कामुकता भरी नारी के जिस्म का भोग
दोस्तो, मैं आपका दोस्त राज एक बार फिर हाजिर
सेक्सी फैमिली स्टोरी में पढ़ें कि एक घर में मुझे तीन शानदार चूतें मिल रही थीं. मैं बारी बारी तीनों को चोद रहा था. एक दिन भाभी की मम्मी और बहन आई तो मम्मी ने मुझसे क्या बातें की?
उस एक ही घर में मुझे तीन तीन शानदार चूतें मिल रही थीं. मैं बारी बारी से तीनों को चोद रहा था. तीनों को ही एक दूसरी पर शक था, परन्तु तीनों को ही कोई ऐतराज़ नहीं था और न ही मुझसे पूछती थीं.
उन तीनों में मैंने एक हल्का सा पर्दा रख रखा था. कह सकते हैं कि हम चारों चुपचाप जिंदगी का मज़ा ले रहे थे.
वैसे तो यह परिवार किसी से ज्यादा घुलमिल कर नहीं रहता था और जबसे मैं उस घर में रहने लगा था तो उन्होंने बिल्कुल ही पड़ोसियों से मिलना बंद कर दिया था.
एक रोज़ जब मैं यूनिवर्सिटी से दोपहर 2.00 बजे घर आया तो सभी ड्राइंगरूम में बैठे थे. उनके साथ दो लेडीज़ और बैठी थीं. एक की उम्र लगभग 59-60 वर्ष थी और दूसरी लगभग 30-32 वर्ष की थी.
पहले मैं उन दोनों का परिचय दे दूँ.
देखने से ही लगा कि वे दोनों ही सरोज की माँ और बहन थीं. सरोज की माँ थी तो 60 के लगभग लेकिन उसने अपने शरीर को गजब का मेन्टेन किया हुआ था. गजब का मेकअप, वही बड़ी बड़ी भारी चुचियाँ और गांड. गोरा रंग, मोटी मोटी आंखें. उसने बहुत ही सुंदर और सेक्सी तरीके से साड़ी पहन रखी थी.
उसके साथ ही उसकी छोटी बेटी यानि कि सरोज की छोटी बहन गीतिका बैठी थी. गीतिका 32-33 साल की गज़ब के हुस्न की मलिका थी. नेहा से थोड़ा भारी शरीर और वही बड़ी बड़ी चुचियाँ व गांड. दूध जैसा गोरा रंग, गोल चेहरा और मोटी मोटी सेक्सी आंखें. गीतिका ने स्लीवलेस टॉप और नीचे पटों में फंसा हुआ प्लाजो पहन रखा था.
उसके टाइट प्लाजो में उसकी भरी हुई गांड और सामने से जांघों के बीच उभरी हुई चूत, चूत की दरार और दोनों बाहरी मोटे भगोष्ठ साफ अलग अलग दिखाई दे रहे थे.
टॉप को फाड़कर, बाहर झांकते दोनों बड़े बड़े मम्मे, गोल सुडौल गोरे बाजू, सुंदर हाथ और उनकी सुंदर पतली, मुलायम, नेल पॉलिश लगी हाथ पांव की गुदाज़ उँगलियाँ गज़ब ढाह रहे थे. गीतिका के होंठ, दाँत, नाक सब कुछ सेक्सी और कातिल था.
जैसे ही मैं ड्राइंगरूम में दाखिल हुआ सरोज बोली- लो आ गया राज!
मैंने उन दोनों को हाथ जोड़कर नमस्कार किया.
सरोज- राज, ये मेरी मम्मी हैं और ये मेरी छोटी बहन गीतिका है.
मैंने सरोज की मम्मी के पाँव छुए तो आंटी ने आशीर्वाद दिया और बोली- बैठो, बेटा.
मैं उन दोनों के सामने वाले सोफे पर बैठ गया.
सरोज की मम्मी बोली- राज बेटा, ये लोग अभी तुम्हारे बारे में ही बातें कर रहे थे, ये बता रही थी कि कैसे तुमने इनकी हेल्प की और रोहित को यहाँ से निकाला. मैं यह जानकर बहुत खुश हुई हूँ.
थोड़ी देर में नेहा मेरे लिए चाय लेकर आ गई.
गीतिका और सरोज की मम्मी एकटक मुझे देखे जा रही थी. गीतिका तो रह रह कर अपने होंठों पर जीभ फिरा रही थी.
सरोज की मम्मी बोली- मैं तो समझी थी तुम कोई बच्चे जैसे होंगे? तुम तो पूरे नौजवान हो, बिल्कुल खिलाड़ियों जैसा बदन है तुम्हारा, जिम जाते हो क्या?
मैं- नहीं आँटी, बस मेरा शरीर ही ऐसा है, जब भी मौका मिलता है तो कभी स्टेडियम में थोड़ी एक्सरसाइज या रेस वगैरह लगा लेता हूँ.
आँटी- बहुत अच्छा करते हो. और क्या क्या होबिज़ हैं?
मैं सरोज की और देखते हुए- बस आँटी पढ़ता हूँ.
सरोज मुस्कुरा दी. वह जानती थी हॉबी तो मेरी चूत मारना ही थी.
मैंने चाय खत्म की.
कुछ देर और बैठने के बाद आंटी कहने लगी- अच्छा राज, तुम मुझे अपना कमरा दिखाओ, तुमने वह कमरा कैसे सजा के रखा है?
मैंने कहा- ठीक है आँटी आओ.
आंटी ने उन सभी से कहा- तुम लोग यहीं बैठो, मैंने राज से कुछ बातें भी करनी हैं.
वे मेरे साथ चल पड़ी और सीढ़ियों में आगे आगे चढ़ने लगी. चढ़ते वक्त आंटी की साड़ी उनकी गोरी और सुडौल पिण्डलियों के ऊपर उठ रही थी और आंटी अपनी गांड को मटका मटका कर चल रही थी.
आंटी के शरीर की बनावट और चाल की चुस्ती देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह 60 साल की होंगी. वे मुश्किल से 40- 45 की लगती थीं.
ऊपर आकर आँटी मेरे बेड पर बैठ गई और मुझे भी साथ बैठने का इशारा किया.
मैं भी बैठ गया.
आंटी ने मुझसे एक दो बातें मेरे घर के बारे में पूछी और फिर बोली- देखो राज, मैंने बहुत दुनिया देखी है, मैं तुमसे अब जो बातें करने जा रही हूँ वे मैं अपने परिवार की इन लड़कियों को ध्यान में रखकर कर रही हूँ.
उन्होंने कहा- मेरे परिवार की ये लड़कियां बहुत शरीफ हैं. लेकिन मैं तुम्हें एक चीज बताना चाहती हूँ कि जिस प्रकार से आदमी को खाने की भूख लगती है उसी तरह से औरत और आदमी के अंदर सेक्स की भूख भी होती है, अच्छा राज! तुम एक बात बताओ ‘क्या तुमने कभी पशुशाला देखी है?’
मैंने कहा- हाँ देखी है.
आंटी पूछने लगी- उस पशुशाला में कितनी भैंस थीं?
मैंने कहा- यही कोई 25-30 भैंस होंगी.
आंटी ने फिर पूछा- और भैंसा कितने थे?
मैंने कहा- एक भैंसा था.
आंटी कहने लगी- तुम्हें पता है वह भैंसा किस लिए रखा जाता है?
वैसे तो मैं जानता था लेकिन अनजान बनते हुए मैंने आंटी से कहा- नहीं आंटी, मैं नहीं जानता किस लिए रखा जाता है?
आँटी मुस्कुराई और बोली- मैं बताती हूँ तुम्हें … किस लिए रखा जाता है. अगर किसी भी भैंस की गर्मी बढ़ती है तो उसकी गर्मी को ठंडा करने के लिए उस भैंसा को रखा जाता है.
मैं आंटी की मुंह की तरफ देखने लगा.
आंटी कहने लगी- गर्मी का मतलब समझते हो कि नहीं?
मैंने कहा- नहीं.
आंटी कहने लगी- तुम भी पूरे बुद्धू हो.
फिर आंटी बोली- बेटा अब मैं तुम्हें खुल कर बताती हूँ, तुम शर्म नहीं करना. जब किसी भी भैंस का चुदवाने को मन करता है तो वह भैंसा उसके ऊपर चढ़ जाता है और उस भैंस को चोद देता है और उस भैंस की गर्मी ठंडी हो जाती है, अब समझे?
आँटी के मुँह से चुदवाने और चोदने जैसे शब्द सुनकर मैंने अपनी गर्दन नीची करली और मैं समझ गया कि आंटी क्या कहना चाहती हैं?
वे बोली- 25-30 भैंस के लिए एक ही भैंसा काफी होता है क्योंकि हर भैंस ने हर रोज तो चुदना नहीं होता, इसलिए भैंसा बारी बारी से उन सबके ऊपर चढ़ता रहता है.
मैंने आँटी से पूछा- आपको ये पशुशाला की बात कहाँ से पता लगी?
फिर आँटी ने जो बताया वह बड़ा ही सेक्सी और रोचक किस्सा था.
अब स्टोरी सरोज की मम्मी अर्थात आँटी के मुँह से:
मेरे मायके में मेरे दादा जी ने हमारे घर के पीछे पशुशाला बना रखी थी. उस पशुशाला के पीछे का छोटा सा हिस्सा खुला था जिसे बाड़ा बोलते थे. उसकी लगभग 4 फुट की कच्ची दीवार थी जिसमें एक लकड़ी का छोटा सा गेट लगा था.
वह बाड़ा बिल्कुल उस कमरे के पीछे था जिसमें मैं सोती थी. उस कमरे में एक बड़ी खिड़की भी थी जो बाड़े की ओर खुलती थी, अर्थात बाड़े में जो कुछ भी होता था उसे नंगी आखों से करीब 6-7 फुट की दूरी से देखा जा सकता था.
उस बाड़े में भैंसा को रखा गया था जो चारा भी वहीं खाता था. भैंसों को अंदर बड़े से हाल में रखा जाता था.
एक दिन मैं, मेरी भाभी और मेरी दादी तीनों कमरे में बैठे थे. उस समय मेरी उम्र बिन्दू जितनी होगी अर्थात मेरे शरीर में बदलाव आ चुके थे, मेरी चूत कुलबुलाने लग चुकी थी, लेकिन दुनियादारी की समझ नहीं थी.
मैंने दादी से पूछा- दादी, ये भैंसा क्यूँ रखा हुआ है, ये क्या दूध देता है?
दादी मुस्कराई और बोली- भैंसा तो भैंसों को काबू करके रखने के लिए रखा हुआ है.
दादी ने बताया कि जब भी कोई भैंस गर्मी में आती है तो भैंसा उसकी गर्मी निकाल देता है.
मैंने पूछा- ये गर्मी क्या होती है?
तो दादी बोली- बेटी, अब तुझे क्या बताऊँ तुम न तो अब छोटी रही हो और न ही बड़ी हुई हो, परंतु बता ही देती हूं.
दादी बोली- जब भैंस का चुदने का दिल करता है तो उसको गर्मी में आना बोलते हैं. तब भैंस को भैंसा की जरूरत होती है और वह भैंसा के लिए इधर उधर भागने लगती है, यहां तक कि सब कुछ तुड़वाकर बाहर भाग जाती है और कई बार मिलती भी नहीं है. कई बार उसको बाहर के गंदे भैंसा मिल जाते हैं जिन्हें कोई बीमारी होती है, इसलिए पशुशाला में ही भैंसा रख लिया जाता है.
दादी ने आगे बताया कि भैंसा जब भैंस के ऊपर चढ़ता है तो भैंस गर्भधारण कर लेती है. इससे फिर दूध देने लग जाती है. मैं दादी की बातें बड़ी ध्यान से सुन रही थी.
तभी उस बाड़े में नौकर एक भैंस को छोड़ गया.
भैंस को देखते ही बैठा हुआ भैंसा खड़ा हो गया और भैंस की ओर बढ़ा. उसने भैंस को पीछे से उसकी चूत के पास से सूंघा, भैंस ने तभी थोड़ा पिशाब कर दिया जिसे भैंसा ने अपने नथुनों पर गिरा लिया और जीभ से चूत को चाटने लगा. भैंसा ने भैंस को कई जगह से अपनी जीभ से चाटा.
मैंने दादी से पूछा- दादी ये क्या कर रहा है?
दादी- बेटी ये इसे प्यार कर रहा है.
तभी मैंने देखा भैंसा के पेट के नीचे उसके लण्ड वाली जगह हरकत हुई और उसमें से गुलाबी गाजर जैसा थोड़ा सा लण्ड दिखाई दिया. उसमें से कुछ बूंदे टपक रही थीं.
फिर अचानक भैंसा ने अपनी गर्दन भैंस की पीठ पर रखी और अपने लण्ड को झटका देकर भैंस के ऊपर चढ़ गया और एक दो बार ट्राई करके अपना लण्ड भैंस की चूत में घुसा दिया.
लण्ड अंदर जाते ही भैंसा ने अपने चूतड़ों को दो तीन बार आगे पीछे किया और कुछ सेकंड रुक कर लण्ड बाहर निकाल लिया.
मैंने देखा भैंसा का लण्ड उस वक्त एक फुट से भी ज्यादा था. लण्ड आगे से पतला और पीछे से मोटा था. जैसे ही लण्ड बाहर निकला तो भैंस की चूत से थोड़ा तरल पदार्थ बाहर निकला. लण्ड निकलते ही भैंस की चूत अपने आप खुलने और बंद होने लगी, तभी भैंस ने अपनी टांगें चौड़ी की और कुछ झुककर फिर पिशाब कर दिया.
भैंसा चुपचाप खड़ा हो कर भैंस को जगह जगह से चाटने लगा था. अचानक मैंने भाभी की ओर देखा जिसका हाथ अपनी चूत को खुजा रहा था. भाभी ने देख लिया कि मैंने उनको देख लिया है और वे झेंप गई.
मैंने दादी से पूछा- दादी, ये भैंस के पिशाब वाली जगह पहले क्या गिरा था?
दादी- वो भैंसा ने चूत के अन्दर अपना वीर्य छोड़ा था जो लण्ड को बाहर निकालते हुए थोड़ा बाहर आ जाता है और उसके साथ ही भैंस की चूत भी पानी छोड़ती है.
मैंने पूछा- दादी क्या भैंस की गर्मी ठंडी हो गई?
दादी- अभी नहीं, अभी ये और करेगा, परंतु ये भैंसा अब बूढ़ा हो गया है इसलिए मुश्किल से दो बार ही ऊपर चढ़ पाता है. मैंने तेरे दादा जी को बोला है अब इसे दफा करो और जवान भैंसा रखो, पर वे सुनते ही नहीं.
भैंसा ने थोड़ी देर बाद दुबारा फिर कोशिश की. लेकिन केवल हूँ.. हूँ.. करके खड़ा हो गया और भैंस चुपचाप खड़ी रही.
दादी बोली- ये अब खस्सी हो गया है, बस ऐसे ही करता रहेगा, निक्कमा कहीं का. खैर, थोड़ी देर बाद भैंसा ने एक जम्प और लभैंसा और भैंस के ऊपर चढ़ गया परंतु उसका लण्ड बाहर ही नहीं निकला.
तो दादी बोली- इसमें सिर्फ बोझ ही रह गया है जिसे भैंस पर लाद देता है.
ये कहकर दादी किसी काम से चली गई.
तभी भैंसा फिर कूदा और अबकी बार उसने फिर से अपना लण्ड भैंस की चूत में घुसेड़ दिया और एक दो बार आगे पीछे हो कर नीचे उतर गया और उसी तरह से भैंस की चूत से लण्ड के साथ ढेर सारा पानी निकला और भैंस ने फिर पिशाब किया.
मुझे ये सब देखकर बहुत अच्छा लगा और मुझे नहीं पता मेरा हाथ कब मेरी चूत पर पहुंच गया. भाभी मुझे भैंस और भैंसा की चुदाई ध्यान से देखते हुए देख रही थी और उन्होंने चूत को खुजाते हुए मेरा हाथ भी देख लिया था.
तभी भाभी ने मेरे चूत वाले हाथ पर अपना हाथ मारा और मेरी तरफ मुस्करा दी.
मैं शर्मा गई.
भाभी बोली- क्या हो रहा है लाडो? जरूरत महसूस होने लगी लगता है, अभी तो छोटी हो, अभी नहीं मिलेगा.
मैं- क्या नहीं मिलेगा?
भाभी- यही जो भैंस ने अभी अभी लिया है.
मैं शर्म से उठकर जाने लगी तो भाभी ने मेरा हाथ पकड़कर वापिस बैठा लिया और बोली- देखती रहो … अभी फिर चढ़ेगा!
उस वक्त मेरे मम्मों का साइज 36 था और मेरे पट और चूतड़ पूरे जवान हो चुके थे और मैं मन ही मन भैंस और भैंसा की चुदाई का आनंद ले रही थी.
मैं आंखें नीची करके फिर बैठ गई और थोड़ी थोड़ी नजरें ऊपर उठाकर भैंसा के चढ़ने का इंतजार करती रही.
भाभी मेरे पास खिसक कर बैठ गई और कभी मेरी ओर देखती तो कभी भैंसा की तरफ देखती. तीसरी बार भैंसा ने सिर्फ भैंस के ऊपर छलांग लगाई और अपने लंड को भैंस की चूत के पास ले जाकर रगड़ने लगा लेकिन उसका लंड बाहर नहीं निकला.
परंतु जब मैं ध्यान से देख रही थी कि भैंसा का लंड अंदर गया या नहीं भाभी ने मेरी एक चूची को पकड़कर दबा दिया और मैं आनंद से सिसकारी ले कर बोली- आई … क्या कर रही हो भाभी?
भाभी मुस्कुरा दी और बोली- यह भैंसा तो बिल्कुल निकम्मा हो चुका है और बेचारी भैंस को तरसा रहा है.
फिर भाभी बोली- तुम्हारे भैया से बोलकर इसकी छुट्टी करवाती हूँ मैं.
लगभग आधा घंटा बैठे रहने के बाद भैंसा ने पांचवीं बार भैंस के ऊपर फिर छलांग लगाई और वह अपना लंड भैंस की चूत के अंदर घुसाने में कामयाब हो गया.
और मेरे मुंह से एकदम निकल गया- हो गया.
भाभी ने मुझे बांहों में भर लिया और बोली- तुम्हारा हुआ कि नहीं?
मैंने कहा- मेरा क्या होना था?
भाभी बोली- कितनी देर से तो अपनी उंगली से लगी हुई हो.
तभी मुझे ध्यान आया कि मेरे हाथ की एक उंगली मेरी चूत को रगड़ रही थी. भाभी फिर मेरी चूचियां सहलाने लगी. परंतु इस बार मैं कुछ नहीं बोली और मैंने आंखें बंद कर ली.
मुझे मजा लेते देख भाभी ने अपना एक हाथ स्कर्ट के ऊपर से मेरी चूत पर रख दिया और बोली- ननद जी यह उम्र ही ऐसी होती है. इस उम्र में लण्ड की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस होती है.
तीसरी बार चोदने के बाद भैंसा बैठ गया और नौकर भैंस को अंदर ले गया.
दोस्तो, मेरी सेक्सी फैमिली स्टोरी में नए पात्रों का आगमन कैसा लगा आपको?
सेक्सी फैमिली स्टोरी जारी रहेगी.
इस कहानी का अगला भाग : एक ही परिवार ने बनाया साँड- 2
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