मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स- 1
लेस्बियन सहेली की कहानी में पढ़ें कि मेरी एक नयी
मेरे प्रिय दोस्तो, मेरा नाम रितिका सैनी है यह मेरी तीसरी कहानी है अगर आपने मेरी पिछली कहानी
स्कूल में पहला सेक्स किया हैंडसम लड़के को पटाकर
हैंडसम लड़का पटाकर चूत चुदाई के बाद गांड मरवायी
नहीं पढ़ी तो जरूर पढ़ लें. आपको यह कहानी पढ़ने में आसानी होगी.
अब आगे:
मेरे पति रवि चुदाई तो मेरी रोज़ करते थे पर तसल्ली से नहीं. बस अपना पानी निकाल कर सो जाते थे. मैं प्यासी ही सो जाती. एक तो चूत की प्यास और फिर ऊपर से सारा दिन घर पर भी अकेली ही रहती थी।
मैं अपने पति रवि से कहकर कुछ दिनों के लिए अपने घर जाना चाहती थी तो रवि ने मुझे अकेले जाने के लिए कहा क्योंकि बैंक से वह ज्यादा दिन की छुट्टी नहीं ले सकते थे. तो उन्होंने मेरे साथ आने से मना कर दिया.
मैंने भी अकेली जाने का मन बना लिया और अपने आने की खबर अपने घर पर बताई घर वाले बहुत खुश हुए.
अगले दिन मेरे पति मुझे बस में बैठा कर चले गए. रास्ता कुछ तीन घंटे का था.
बस से उतरकर फ़ोन किया तो मुझे लेने मेरे पिताजी आ गए. घर पर पहुँची माँ से मिली उनसे कुछ देर बात की और फिर खाना खाकर अपने कमरे में आराम करने चली गई. ज्यादा थक जाने की वजह से मैं लेटते ही सो गई.
सुबह लेट उठी पिता जी अपने काम पर जा चुके थे. उठकर सीधा मैं नहाने चली गयी और नहाने के बाद खाना खाकर मैं छत पर चली गयी.
घर के साथ में जो घर था वहाँ पर शालू आंटी कपड़े सुखा रही थी जो मेरी माँ की काफी अच्छी सहेली भी थी. उनका बेटा जो पढ़ने के लिए बाहर गया हुआ था, वह आया हुआ था और अपने फ़ोन में लगा हुआ था. उसका नाम हर्ष था, हाइट करीब छः फुट थी.
मैंने उसको काफी समय बाद देखा था. वह बचपन में मुझे दीदी कहकर बुलाता था. हर्ष ने मुझे देख ‘हेलो दीदी’ कहा और फिर अपने फ़ोन में लग गया.
आंटी मेरे पति रवि के बारे में पूछने लगी. थोड़ी देर बाते करने के बाद मैं नीचे चली गयी.
शाम को मैं अपनी माँ के साथ गली में कुर्सी पर बैठी थी। हर्ष अपनी एक्टिवा पर जा रहा था, वो मुझे देख बोला- आओ दीदी, बाजार घूमने चलते हैं.
मुझे उसकी नज़र में कोई कमीनापन नज़र नहीं आ रहा था। मैं भी बिना कुछ सवाल किए अपना पर्स लेकर उसके साथ चल दी.
मैं जैसे ही पीछे बैठने लगी तो वो बोला- लो दीदी आप चलाओ।
मैंने कहा- मुझे तो चलानी ही नहीं आती!
तो वह बोला- कोई नहीं, मैं सिखा दूँगा.
शाम का टाइम था. शाम के टाइम काफी भीड़ भी होती है तो मैंने उसे मना कर दिया.
तो फिर हर्ष बोला- मैं आपको सुबह सुबह सीखा दूँगा।
मैं ‘ठीक है’ कहकर उसके पीछे बैठ गयी और हम बाजार घूमने के लिए निकल गए.
हर्ष ने घर के लिए कुछ सामान खरीदा, फिर हम दोनों ने गोलगप्पे खाये और घर के लिए निकल दिए.
अंधेरा हो चुका था, हर्ष एक्टिवा बहुत धीमे चला रहा था और मुझसे बातें करता चल रहा था।
हर्ष ने मुझसे मजाक में पूछा- दीदी, जीजाजी के क्या हाल हैं?
मैं थोड़ा निराश स्वर में बोली- ठीक ही है।
हर्ष मेरे मुँह से ऐसी निराशा भरी आवाज़ से अपनी एक्टिवा साइड में रोक कर पीछे मुड़ कर मजाक में पूछने लगा- क्यों क्या हुआ? वे आपको रात को खुश नहीं रखते क्या?
मैंने शर्माकर उसकी कमर पर हल्का सा थप्पड़ मार दिया और उसे घर चलने को कहा.
वह फिर से मज़ाक में बोला- कभी मेरी जरूरत हो तो बताना, मैं आपको बिल्कुल खुश कर दूँगा.
यह कहकर उसने एक्टिवा स्टार्ट कर ली और घर की तरफ चल दिया.
हालांकि उसने कहा तो मजाक में ही था पर यह बात मैं सारे रास्ते सोचती रही. मुझे भी एक लंड की तलाश थी. और यह सोचते-सोचते हम घर पहुँच गए.
वह मुझसे जाते हुए बोला- सुबह तैयार रहना अगर आपको एक्टिवा सीखनी हो तो!
मैंने कहा- ठीक है, सुबह आ जाना पाँच बजे.
वह ‘ठीक है’ कहकर अपने घर चला गया जो मेरे घर के पीछे ही था.
मैं अपने घर में गयी और अपनी माँ से बात करने लगी. पापा भी आ चुके थे. कुछ देर बातें की और खाना खाकर अपने कमरे में चले गयी।
मैंने अपने कपड़े बदले और अपने पति से कुछ देर बाते करने के बाद सोने की तैयारी करने लगी. पर मुझे नींद नहीं आ रही थी, मेरे दिमाग में सिर्फ हर्ष की कही हुई बात घूम रही थी।
यह सोचते-सोचते मैं कब सो गई, पता ही नहीं चला.
सुबह सवा पाँच बजे के आस-पास डोरबेल बजी. माँ ने गेट खोला तो देखा कि हर्ष खड़ा था.
माँ ने हर्ष से पूछा- इस टाइम क्या काम है बेटा?
तो हर्ष बोला- दीदी एक्टिवा सीखने के लिए कह रही थी.
माँ बोली- अभी तो रितिका सो रही है, जाओ उठा दो जाकर!
हर्ष यह सुनकर सीधा मेरे कमरे में आ गया. मैं उल्टी पेट के बल लेटी हुई थी जिससे उसको मेरी उभरी हुई गांड दिखी और वह पजामे के ऊपर से ही बिल्कुल आराम से मेरी गांड दबाने लगा. हालाँकि हर्ष काफी लंबा और हट्टा कट्टा था पर फिर भी उसके दोनों हाथों में मेरी गांड नहीं आ रही थी.
मैं हल्की नींद में थी, मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. फिर सोचा घर पर तो माँ और पिता जी के अलावा कोई है नहीं … तो ये कौन हैं.
एकदम से मैं उठी और उसको देखकर खुश हुई और उसकी इस हरकत से मुझे अच्छा भी लगा।
मैंने थोड़ा स्माइल फेस से हर्ष को कहा- तुम क्या कर रहे थे?
वह बिना घबराए बेशर्मी के साथ बोला- मुझे आपके शरीर में आपकी गांड सबसे ज्यादा अच्छी लगती है. क्या साइज है वैसे आपकी गांड का?
मैंने बात को टालते हुए कहा- जाओ एक्टिवा निकाल लो, इतने मैं मुँह धोकर आती हूँ।
वह निराश सा नीचे मुँह करके चला गया.
मैं मुँह धोकर बाहर निकली तो वह बाहर खड़ा था. मेरे बाहर आते ही वह पीछे हो गया और मुझे आगे बैठने के लिए कहा। मैं बैठ गयी हर्ष ने मेरे हाथों के ऊपर से अपने हाथों से हैंडल पकड़ लिया मैं तो उसके सामने छोटी लग रही थी.
वह मुझसे बिल्कुल चिपक गया. हल्के-हल्के उसका लंड मुझे अपनी गांड पर बड़ा होता हुआ महसूस हो रहा था। मुझे उसका लंड बहुत ज्यादा बड़ा लग रहा था.
अब तो मैंने मन ही मन सोच लिया था कि अब तो इसके लंड से ही चुदना है।
मैंने एक्टिवा स्टार्ट करी और हम अब गलियों से बाहर निकलकर सड़क पर आ गए. आसपास कोई दिखाई नहीं दे रहा था, अभी तक अंधेरा भी था. फिर उसने अपना मुँह मेरी कंधे पर रखा और उसके गाल से मेरे गाल चिपक रहे थे।
मैं एक्टिवा बिल्कुल आराम से चला रही थी क्योंकि मुझे साईकल चलानी आती थी तो बैलेंस करने में इतनी दिक्कत नहीं हुई. वह मुझसे चिपक कर बैठा था, उसके चिपकने से मुझे अच्छा लग रहा था. उसका लंड मेरी गांड पर दस्तक दे रहा था. उसके लंड के अहसास से मेरी चूत भी पानी छोड़ रही थी।
घर से करीब हम पाँच किलोमीटर दूर आ गए थे. हर्ष ने अपने हाथ आगे बढ़ाए और एक्टिवा को सड़क से थोड़ा सा साइड में रोका और उतर कर पेशाब करने लगा।
मैं उसका लंड देखना चाहती थी और शायद वो भी मुझे अपना लंड दिखाना चाहता था। अंधेरे की वजह से मैं इतना साफ नहीं देख पा रही थी। वह अपना लंड हाथ में पकड़ कर घूम गया और जैसे ही पजामे को ऊपर करने लगा पीछे से आ रहे ट्रक की हेड लाइट से मुझे उसका लंड दिख गया।
मैं उसका लंड देखकर एकदम चौंक गयी क्योंकि जितना मैंने सुना था कि भारत में मर्दों का लंड अधिकतम छह या सात इंच का होता है. पर हर्ष का लंड इतने से भी ज्यादा लम्बा था. मैं उसका लंड देखकर मन ही मन खुश हुई और एक्टिवा स्टार्ट की.
कुछ देर एक्टिवा चलाने के बाद हम घर की तरफ जाने लगे. उसके लंड की तस्वीर मेरे दिमाग में छप चुकी थी और पीछे से हर्ष आराम-आराम से अपना लंड भी मेरी गांड पर घिस रहा था. मैं भी उसे कुछ नहीं कह रही थी, शायद वो इसी का फायदा उठा रहा था.
अब मैंने एक्टिवा की स्पीड थोड़ी बढ़ाई क्योंकि मैं जल्दी घर पहुँचना चाहती थी. मेरी चुत बिल्कुल तेज़ी से गीली होती जा रही थी। मैं घर जाकर अपनी चुत को शांत करना चाहती थी.
हम घर पहुँच गए, हर्ष अपने घर चला गया और मैं जल्दी से बाथरूम में घुस गई. जाते ही मैं अपने सारे कपड़े निकाल कर पूरी नंगी हो गयी और अपनी चिकनी चुत पर हाथ घुमाने लगी और चुत के दाने के साथ मज़ा करने लगी. कुछ ही देर में हस्तमैथुन करके मैं झड़ गई और अपनी चुत को धोकर आराम करने अपने कमरे में चली गयी.
करीब एक घंटे बाद उठी, फ्रेश हुई, नहाई और खाना खाकर फिर से आराम करने अपने कमरे में चली गयी. पिता जी काम पर चले गए मेरी माँ घर के काम निपटा कर साथ वाले घर (हर्ष के घर) चली गयी. मेरी माँ की और हर्ष की माँ यानि शालू आंटी के साथ ज्यादा अच्छी बनती थी।
हर्ष मेरी माँ को अपने घर देखकर खुश हुआ और सोचा कि मैं अब अकेली घर पर होऊंगी और वह मेरे घर आ गया।
मैं भी जैसे उसका ही इंतज़ार कर रही थी। वह सीधा मेरे कमरे में आ गया और मेरे साथ बेड पर आकर बैठ गया वह काफी मजाक कर रहा था और माजक-मजाक में मुझे छूने लगा. मुझे भी मज़ा आ रहा था, मेरे शरीर के स्पर्श से उसको भी खुशी मिल रही थी और उसकी खुशी उसके पजामे में से बड़ी होती दिखाई दे रही थी।
वह मुझसे हँसी मजाक कर रहा था. मैंने भी मजाक में हँसकर उसके जांघ से थोड़ी सी दूरी पर हाथ रख दिया। उसका लंड उछाल मार रहा था. पजामे के ऊपर से मैंने हल्का सा उसके लंड को हाथ लगाया और कहा- काफी शैतान हो गया है तुम्हारा एनाकॉन्डा।
उसने कहा- हाँ, काफी दिनों से बिल में नहीं गया।
मैंने कहा- तो करा दो इसको बिल की सैर!
तो उसने मेरे हाथ को पकड़ कर बड़े प्यार से अपने लंड पर रख दिया और मुझसे पूछा- क्या तुम अपने बिल की सैर कराने का मौका दोगी?
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मैं भी यही चाहती थी। मैं उसकी इस बात पर शर्मा गयी।
हर्ष थोड़ा सा उठा और उसने पजामे के साथ अपना अंडरवियर भी एक साथ उतार दिया उसका लंड मेरे सामने था. मैं बेड पर आराम से लेटी हुई थी.
वह खड़ा हुआ और हल्का सा झुक कर लंड को मेरे मुँह के पास लेकर खड़ा हो गया मैंने बिना देरी किये उसका लंड लेटे-लेटे ही मुँह में लेने की कोशिश की पर उसका लंड ज्यादा बड़ा होने के कारण ज्यादा अंदर तक नहीं जा रहा था.
वह मेरे मुँह को चोदने लगा। मैं लेटी हुई थी.
फिर उसने अपना हाथ बढ़ा कर मेरी चुत पर रख दिया और चुत पर हाथ घुमाने लगा. मुझे बहुत मजा आ रहा था। वह अब मेरे मुँह को जल्दी-जल्दी चोदने लगा और अपना सारा वीर्य मेरे मुँह में ही छोड़ दिया. लंड तो बड़ा था ही और वीर्य भी उसका बहुत सारा निकला. मैं भी उसके वीर्य को एक रण्डी की तरह पी गई। मैंने उसका लंड चाट कर साफ कर दिया.
वह अब मेरी चुत की तरफ बढ़ने लगा और मेरी लोअर को उतार दिया मैंने आपको पहले भी बताया था कि मुझे अपनी चूत पर बिल्कुल भी बाल पसन्द नहीं हैं, मैं हर पंद्रह से बीस दिन में अपनी चूत के बाल साफ करती हूँ।
उसने जैसे ही मेरी चूत को देखा, उसने अपने हाथ की सबसे बड़ी वाली उंगली मेरी चूत की लकीर पर फिराई और उंगली को अंदर डाल दिया. फिर बाहर निकाल कर उंगली पर लगे मेरे पानी को चाट गया। फिर वो झुक कर अपनी जीभ से मेरी चुत की चुदाई करने लगा।
मेरा बस होने ही वाला था कि एकदम से गेट खुलने की आवाज आई. हम दोनों हड़बड़ा गए; मैंने जल्दी से अपने लोअर को ऊपर किया, हर्ष साइड में बैठ गया.
मेरी माँ सीधा मेरे कमरे में आई. उनको पता नहीं था कि हर्ष घर पर है.
माँ हर्ष को देखकर बोली- बेटा तुम कब आये?
हर्ष- बस आंटी जी अभी आया हूँ.
फिर माँ दूसरे कमरे में चली गयी।
मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था.
हर्ष मेरी हालत देखकर बोला- कोई नहीं दीदी, रात को छत पर आ जाना!
यह कहकर उसने अपना नंबर मुझे दिया और अब मैं रात का इंतज़ार करने लगी।
हल्का-हल्का अंधेरा होने लगा था. मैं छत पर पहले ही जाकर खड़ी हो गयी. मैंने हर्ष को फ़ोन करके ऊपर बुलाया. वह भी जल्दी से ऊपर आ गया.
वह अपनी छत से कूदकर मेरी छत पर आ गया. अभी पूरा अंधेरा नहीं हुआ था तो वह मुझसे बात करने लग गया।
हर्ष- आज काफी दिनों बाद बहुत अच्छा लगा।
मैंने गुस्से में कहा- तुम्हारा तो हो गया था पर मेरा क्या?
हर्ष बात को काटते हुए बोला- दीदी, आज आपकी सारी ख्वाहिश पूरी कर दूँगा।
मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा- देखते हैं … तुम क्या कर सकते हो।
बातों बातों में अंधेरा भी हो गया था. उसने चारों तरफ देखकर मुझे दीवार पर लगाया और मुझे चूमने लगा. उसको मेरे होंठ चूसने के लिए काफी झुकना पड़ रहा था. तो उसने मुझे बांहों में भरकर एक छोटी से बच्ची की तरह ऊपर उठा लिया और मेरे होंठों को चूसने लगा.
साथ साथ वो मेरी चुचियाँ भी दबाने लगा. वही एक ऐसा शख्स था जिसके दोनों हाथों में मेरी दोनों चुचियाँ समा गई थी. नहीं तो आज तक मैं जितने भी लोगो से चुदी हूँ, उनके हाथ छोटे पड़ जाते थे मेरी चुचियाँ पकड़ने में।
मैं भी उसका पूरा साथ दे रही थी. हमें ऊपर किसी का डर भी नहीं था.
हर्ष ने अपनी छत पर लगा दरवाजा बंद किया हुआ था और मेरी माँ पैरों में दर्द होने की वजह से छत पर आती नहीं थी. पापा अभी आये नहीं थे। हम बिना डरे मजे कर रहे थे.
थोड़ी देर बाद उसने मुझे घुमाया और हल्का सा झुका दिया और नीचे बैठ कर मेरे लोवर उतार दिया. फिर उसने अपना मुँह मेरी चूत पर लगा दिया और अपनी जीभ से मेरी चूत को चोदने लगा.
मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।
काफी देर बाद वह उठा और खड़ा होकर अपना भी लोअर उतार दिया और अपने खड़े लंड पर थूक लगाकर लंड को चूत पर लगाया और एक जोरदार धक्के के साथ अपना करीब आधे से ज्यादा लंड मेरी चूत में उतार दिया.
उम्म्ह… अहह… हय… याह… मुझे चूत में बहुत दर्द हुआ पर इतने बड़े लंड से चुदने की तमन्ना भी मेरी ही थी तो मैं इतना दर्द तो सहन कर सकती थी क्योंकि इतना बड़ा लंड मैं पहली बार लिया था.
हर्ष ने आधे डले लंड से ही चुदाई शुरू कर दी थी और चोदते चोदते मुझे ऊपर उठा लिया. उठाते वक़्त हर्ष ने मेरे मुँह पर हाथ रखा और पूरा लंड एकदम से घुसा दिया.
मैं रोने लगी और मेरी चूत में से खून भी निकलने लगा.
हर्ष थोड़ी देर रुका और फिर से मुझे चोदने लगा. हाथों को आगे चुचियों पर लाते हुए जोर-जोर से मसलने लगा जैसा इनमें से आज ही सारा दूध निकालेगा. वो पीछे से धक्के लगाने लगा. मुझे बहुत दिनों बाद जबरदस्त लंड का मज़ा मिल रहा था और दर्द भी हो रहा था.
अगर हर्ष की जगह मेरे पति होते तो वे अब तक झड़ गए होते. हर्ष मुझे लंबी रेस का घोड़ा लग रहा था, वह मुझे बहुत बुरी तरह से चोद रहा था. मैं भी यही चाहती थी कि कोई मेरी चुत को तसल्ली से चोदे.
इसी बीच मेरा रज छूट गया था जो मेरी चूत से होता हुआ नीचे टांगों तक आ रहा था. पर हर्ष अभी भी मुझे बहुत तेज़ी से चोदे जा रहा था.
कुछ देर बाद मेरा फिर से हो गया और मेरी चुत में भी दर्द होने लगा था. मैंने हर्ष के लंड को अपनी चूत में से निकाला और नीचे घुटनों के बल बैठ कर उसके लंड को पहले कपड़े से साफ किया और फिर मैं उसके आधे लंड को ही मुँह में डालकर चूसने लगी.
हर्ष ने भी मेरे बालों को पीछे से जोर से पकड़ लिया और मेरे मुँह को चोदने लगा. फिर मैं उठी और हर्ष को मेरी गांड पर थूक कर गीला करने के लिए कहा.
जोश में आकर मैं हर्ष के लंड से अपनी गांड मरवाना चाहती थी कि फिर पता नहीं फिर ऐसा लंड कब मिले!
हर्ष नीचे बैठ कर मेरी गांड के छेद पर अपनी जीभ डालकर चाटने लगा और काफी सारा थूक मेरी गांड में छोड़ दिया. फिर लंड को गांड के छेद पर लगाकर हल्के हल्के से गांड में डालने लगा और लंड पूरा अंदर जाते ही वह मुझे फिर से तेज़ी से चोदने लगा।
काफी देर बाद हर्ष की रफ्तार कम हो गयी और बोला- दीदी कहाँ छोडूँ?
तो मैंने मुस्कुराते हुए कहा- अपनी दीदी की चूत में छोड़ दो!
इतना सुनते ही वह लंड निकाल कर चूत में डाल कर फिर से मुझे चोदने लगा; मुझे भी मजा आने लगा.
कुछ मिनट बाद ही उसकी एक लंबी गर्म पिचकारी मुझे अपने अंदर महसूस हुई फिर तो बहुत सी पिचकारियाँ मुझे अपने अंदर महसूस हुई. पर हर्ष ने अभी धक्के मारना बंद नहीं किया था और साथ ही मैं भी झड़ गयी।
थोड़ी देर बाद हर्ष का लंड छोटा होकर बाहर निकल गया. छोटा होकर भी उसका लंड करीब चार इंच का था.
हम दोनों ने अपने कपड़े सही करे।
मैं काफी खुश थी; मैंने कहा- वाह हर्ष, तुमने तो सही में आज कमाल कर दिया.
और मैं उसके गले लग गयी.
उसने भी मुझे बांहों में भर कर अपने हाथ मेरी गांड पर रख कर मुझे ऊपर की तरफ उठा लिया और एक किस माथे पर करी और फिर मेरे होंठ चूसने लगा।
फिर मैं उसे बाय कहकर नीचे आ गयी और अपने कमरे में लेट गयी।
थोड़ी देर बाद पिता जी भी आ गए। फिर हमने साथ में खाना खाया और मैं अपने बैडरूम में चली गयी। अपने पति से थोड़ी देर बात करके फिर करीब ग्यारह बजे तक हर्ष से फ़ोन पर बात करी। मैंने उसको कहा- सुबह आ जाना एक्टिवा लेकर।
वह भी खुश हो गया और बोला- ओके दीदी!
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