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में आपने पढ़ा कि कैसे मैंने गांव की ही एक लड़की को पटा कर चुदाई की और अब चुदने की बारी उसकी माँ की थी।

उसकी माँ भी अपनी बेटी की तरह ही मस्त माल थी। सैंतीस साल के लगभग होगी उसकी मां की उम्र। गांव की औरतें तो काम धंधा करने की वजह से वैसे ही फिट रहती हैं। इसका पति फौजी था तो साल में 2 बार ही घर आता था। मुझे वैसे भी उसे पटाने में ज्यादा दिक्कत नहीं होनी थी। बस मौके की तलाश करनी थी बाकी चुदने को तो वो भी मरी जा रही थी।

कुछ दिन मैंने उसकी बेटी को अपने कमरे या जंगल में ही चोदा। उसकी माँ जब भी मुझे गांव में मिलती तो मुझे देख कर मुस्कुरा देती. मैं भी मुस्कुरा कर निकल लेता।

एक दिन जब हमारे आस-पास कोई नहीं था वो मेरे सामने ही साड़ी के ऊपर से ही अपनी चूत खुजलाने लगी।
यह मेरे लिए साफ इशारा था कि उसकी चूत अब लण्ड मांग रही है.
मैंने भी ऊपर से ही उसे लण्ड सहला कर दिखाया।
वो आज भी मुस्कुरा कर निकल गयी। हम दोनों को पता था गांव में खुलेआम कुछ भी नहीं हो पायेगा और उसके लिए तो कमरा ही चाहिये।

एक दिन वो फिर मुझे अकेले में मिली और बोली- राज सुनो, जब से मैंने तुम्हें अपनी बेटी को ठोकते हुए देखा है तब से ही तुम्हारा लण्ड मुझे भी अपनी चूत में लेने की इच्छा है। बोलो कब चोदोगे मुझे?
“आंटी जी, मैं तो अभी चोद दूं मगर आप की बेटी को पता चल गया तो ये ठीक नहीं होगा। अभी कुछ दिनों बाद ही स्कूल की छुट्टियां होने वाली हैं. आप अपने बच्चों को उनके ननिहाल भेज देना तब मैं आपकी सारी खुजली मिटा दूंगा। अगर ज्यादा ही जल्दी है मेरा लण्ड लेने की तो रात में मेरे कमरे में आ जाओ वहीं आपकी खुजली मिटाने का जुगाड़ कर देता हूँ।”

“ना बाबा ना … अगर किसी को भनक भी लग गयी तो मेरा तो गांव में रहना मुश्किल हो जाएगा। जहां इतना इंतजार किया है मैं कुछ दिन और रह लूंगी पर चुदाई तो मैं अपने ही बिस्तर पर करवाऊंगी।”
“तो ठीक है आंटी, और थोड़े दिन इंतजार करो, फिर मिलते हैं।”

कुछ दिनों बाद ही स्कूल की सर्दियों की छुट्टियां पड़ने वाली थी. उससे पहले एक बार मौका निकाल कर मैंने उसकी बेटी को जम कर चोदा। फिर तो छुट्टियां भी हो गयीं और आंटी ने अपने दोनों बच्चों को नानी के घर भेज दिया। दिन में दोनों बच्चे मेरे ही सामने निकले। दोनों भाई-बहन को मैंने बाय कहा। दोनों मुस्कराते हुए निकल गए। उनकी माँ भी उन्हें छोड़ने सड़क तक आयी थी।

दोनों के जाते ही आंटी बोली- राज अब रास्ता पूरा साफ है। आज से लेकर और अगले 15 दिन तक मैं घर में अकेली हूं। आज रात को ही टाइम पर आ जाना. मैं तुम्हारा इंतजार करुंगी।

“आंटी घर में सबके सोने के बाद ही मैं आपके पास आऊंगा। दरवाजे में कुंडी मत लगाना, सिर्फ भेड़ कर छोड़ देना ताकि मैं बिना आवाज के अंदर आ सकूं और तुम्हारे भी पड़ोस में किसी को पता ना चल सके।”
“ठीक है.” कहकर आंटी भी अपने घर चली गयी।

अब बस रात होने का इंतजार करना था. जब मुझे बेटी के बाद उसकी मां की चूत मारने का मौका भी मिलने वाला था. वो भी पूरे 15 दिन तक। मैंने दिन में ही अपनी पूरी साफ सफाई कर ली। लण्ड को तेल लगा लगा कर चमकाया। उसके चारों ओर उगे झांट के बालों को रेजर से साफ कर लिया। अब मेरा लण्ड आंटी की चूत में जाने की पूरी तैयारी कर चुका था।

गांव में तो रात को खाना सभी जल्दी खा कर सो जाते हैं ताकि सुबह जल्दी उठा जा सकें। रात को घर में सबके खाना खाने के बाद सभी अपने अपने कमरों में सोने चले गए। एक घंटे बाद ही सभी जगह सन्नाटा पसर गया।

मैंने कुछ देर और इंतजार किया और बाहर आकर देखा तो चारों ओर शांति छायी हुई थी। वैसे भी मैं अकेला ही नीचे सोता था बाकी सभी पहली मंजिल में सोते थे तो किसी बात का तो डर था नहीं। वैसे भी घर वालों को कौन सा पता होना था कि मैं आज रात किसी की माँ चोदने जा रहा हूँ।

मैंने अपना दरवाजा बाहर से बंद किया लेकिन कुंडी नहीं लगाई ताकि कोई नीचे आ भी गया तो उसे यही लगे कि दरवाजा अंदर से ही बंद है। दरवाजा जल्दी न खुल पाए इसके लिए मैंने नीचे से उसमें गत्ता फंसा दिया ताकि वो हवा के जोर से खुल न पाये। मैंने पूरे कपड़े काले पहने थे और सर में भी काली टोपी डाल ली ताकि रात में कोई गली में बाहर भी देखे तो मुझे देख ही न पाये।
पूरी तैयारी के साथ मैं 11 बजे आंटी के घर पहुंच ही गया।

उनके आंगन में जाने से पहले वहां भी मैंने आस-पास देखा. सब ठीक था। आंटी ने भी घर के बाहर की सारी लाइटें बंद कर रखी थीं जो मेरे लिए काफी फायदेमंद था.

मैं झट से उनके घर के अंदर घुस गया. दरवाजा तो बस धकेलना ही था. थोड़ी ही देर में मैं उनके कमरे के अंदर था।

जैसे ही मैंने लाईट जलाई तो आंटी बोली- राज आज के लिए लाइट बंद कर दो कल से चाहे तुम्हारी जो मर्जी हो। आज पहली बार मुझे शर्म भी बहुत आ रही है।
मैंने भी सोचा कि एक बार ऐसे ही चोद लेता हूँ। चुदने के बाद तो वैसे ही इसकी सारी शर्म हवा हो जाएगी। मैंने दुबारा से लाइट बंद कर दी और दरवाजे पर कुंडी लगाकर अपनी टोपी और जूते उतार कर उनके बिस्तर में उनकी बगल में लेट गया।

जैसे ही मैं उनके बिस्तर में पहुँचा वो भी मुझ से सट गयी। बाहर मौसम ठंडा था तो मैंने अपना एक हाथ उनकी कमर में रख लिया।

फिर आंटी ने मुझ से कहा- राजा मुझे ज़ोर से पकड़ो. अगर तुम्हें बहुत ठंड लग रही है तो अब सारी ठंड भाग जाएगी तुम्हारी।
मैंने उनसे कहा- आप घूम कर लेट जाओ.

आंटी के सिर को मैंने अपने एक हाथ के नीचे रखा और दूसरा उनके पेट पर रखा। अब हम दोनों की पोजिशन कुछ इस तरह थी कि उनकी गांड मेरे लंड पर पूरी तरह से चिपकी हुई थी और मैं पूरी तरह से उसे दोनों हाथों से पकड़े हुआ था।

मेरा लंड आंटी की गांड की दरार के बीच में घुस कर टाइट होने लगा था। मैं अपनी कमर को और आगे ले जाने लगा और अपनी पकड़ को भी टाइट करने लगा। आंटी ने भी अपनी कमर और पीछे खिसका ली. कुछ ही देर में मेरी ठंड गायब थी और मेरा लंड अब मेरे बस में नहीं था। मेरा लंड अब बेकाबू हो रहा था और वो पूरी तरह से आंटी की चूत में घुसने को तैयार था।

आंटी शायद शर्म की वजह से ज्यादा आगे नहीं बढ़ पा रही थी। सभी औरतों का यही हाल होता है. वो किसी और से चुदना तो चाहती हैं पर अपनी शर्म को छोड़ना भी नहीं चाहती। सोचती हैं कि सामने वाला मुझे चोद जाये पर मैं ना-ना करती रहूं या कुछ भी न करूं।

यही हाल यहाँ आंटी का भी था।

तभी मैंने अपने हाथ को उनके ब्लाउज के नीचे घुसा कर उनके पेट पर रख दिया. उनका पेट तो गर्म हो रहा था। मेरा ठंडा हाथ रखने से मुझे भी काफ़ी अच्छा लग रहा था।

मैं अपने हाथ को आंटी के पेट पर और ज़ोर से रगड़ने लगा। मैं धीरे-धीरे उसके पेट को सहलाने लगा। सहलाने के कारण कई बार मेरा हाथ उनकी चूचियों से टकराया लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा।
अब मैं आंटी के एक दूध को पकड़ कर सहलाने लगा। उनकी दूध का निप्पल बिल्कुल टाइट हो कर बाहर निकल गया था। मैं उनके निप्पल को उंगलियों के बीच रख कर धीरे-धीरे घुमाने लगा। अब उनके मुंह से सिसकारियां निकलनी शुरू हो गयी थी।

फिर मैंने उनके ब्लाऊज के सारे बटन आगे हाथ ले जाकर खोल दिये और पीछे से पूरी उठा कर उसको गर्दन तक कर दिया और उसकी ब्रा के हुक भी खोल दिये. फिर मैंने भी अपनी टी-शर्ट और बनियान उतार कर अपने पेट और सीने को उसकी नंगी पीठ पर सटा कर पूरी तरह से खुद को आंटी से चिपका लिया.

आंटी को भी मेरे जिस्म की गर्मी अच्छी लग रही थी. वो भी मुझसे पूरी तरह से चिपक गयी थी। अब मेरे लंड को और रोक पाना मेरे लिये मुश्किल हो रहा था। मैं उसके पेटिकोट का नाड़ा खोलकर उसके पेटिकोट को धीरे धीरे नीचे करने लगा तो वो थोड़ी-थोड़ी कमर उठाने लगी। मैं समझ गया कि आंटी को अब लंड की गरमी की ज़रूरत है. वो अब पूरी तरह से तैयार थी।

मैंने अब अपने बाकी कपड़े भी उतार फैंके और उन्हें भी पूरी नंगी करने के लिए पहले उनका ब्लाउज और ब्रा उतारी और फिर उनके पेटिकोट को पूरा उतार दिया। अन्दर से और कुछ पहना नहीं था उन्होंने, जो मेरे हाथों से उनके चूतड़ सहलाने पर मुझे मालूम हुआ।

जैसे ही मैंने उनकी चूत को छुआ उनकी आह … निकल गयी। वो मुझ से अभी भी कुछ नहीं बोल रही थी. शायद शर्म का पर्दा भी बिना चूत में मेरे लण्ड के गए हुए फटता नहीं दिखाई दे रहा था मुझे। उनकी चूत पूरी गीली थी. मेरा भी बुरा हाल था.

मैंने अपने लण्ड पर थोड़ा थूक लगाया और उनके पीछे पहले की तरह लेट गया। लण्ड को उनकी चूत के मुहाने पर थोड़ी देर घिसा, उन्होंने भी अपनी कमर पीछे को करके लण्ड का स्वागत किया. फिर मैंने अपने लंड को उसकी चूत पर रख कर धीरे से एक धक्का मारा और लंड पूरा का पूरा चूत में घुस गया।

मैं अब उसकी चूचियों को अपने हाथों से ज़ोर ज़ोर से दबा रहा था। अब मैंने धीरे-धीरे पीछे से उनकी चूत में धक्के लगाने शुरु किये।
वो भी आह-आह के साथ ही इस चुदाई का मजा ले रही थी।

चूत में लण्ड जाने के अब कुछ देर बाद ही उनकी शर्म का पर्दा भी हट ही गया। थोड़ी देर के बाद वो मेरी तरफ़ घूम गयी। मैं अब उनके दोनों पैरों को खोल कर बीच में बैठ गया और उसकी चूचियों को मुंह से चूसने लगा।

तभी आंटी मेरे लंड को पकड़ कर अपनी चूत की तरफ़ खींचने लगी। मैं समझ गया कि उसकी चूत चुदवाने के लिये बेताब हो रही है।

मैंने अपने लण्ड को उसकी चूत के छेद पर रख कर एक जोर का झटका मारा और पूरा का पूरा लण्ड उसकी पनियाई देसी चूत में घुस गया। वो पूरी मस्ती में आ चुकी थी। उसके मुंह से ऊह-आह की आवाज़ निकल रही थी। मैं पूरी स्पीड में अपने लण्ड को पूरा बाहर करके अंदर डाल रहा था। लण्ड और आंटी की चूत के टकराने से थप-थप की आवाज़ आ रही थी। आंटी भी अपनी कमर को उठा-उठा कर पूरा साथ दे रही थी।

फिर अचानक वो मेरी कमर को पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से खींचने लगी. मैं भी ज़ोर-ज़ोर से उसे चोदने लगा और फिर अचानक मेरे लण्ड ने 8-10 झटकों में पिचकारी की तरह पूरी गर्मी को आंटी की चूत में भर दिया। आंटी भी पूरी ताकत से मेरे सीने से चिपक गयी। हम दोनों आधे घंटे तक वैसे ही पड़े रहे।

“तो आंटी … कैसी रही चुदाई, मजा आया या नहीं?” मैंने पूछा.
“राजा, बहुत मजा आया. बहुत दिनों बाद लण्ड लिया।”

“लेकिन आंटी मैं आपसे खुश नहीं हूं. आपने बिल्कुल भी मेरा साथ नहीं दिया. पहले सब कुछ मुझे ही करना पड़ा।”
“अरे मेरे राजा, पहले मुझे बहुत शर्म आ रही थी. कहा मैं इतनी बड़ी, कहाँ तुम मेरे से उम्र में इतने छोटे! कैसे मैं तुम्हारा लण्ड लूंगी यही समझ में नहीं आ रहा था। मगर इस चूत को तो तुम्हारा लण्ड अपने अन्दर लेना ही था तो अब मैं क्या करती, कुछ समझ नहीं आ रहा था।”

“आंटी जी, लण्ड और चूत में उम्र नहीं देखी जाती है। बस मजे देखे जाते हैं. यदि आपको मजा लेना है तो आपको मुझे अपना पति ही समझना पड़ेगा। आपने देखा नहीं कैसे आपकी बेटी अपनी टांगें उठा-उठा कर मेरा लण्ड अन्दर तक ले रही थी। वैसे ही आप भी जब करेंगीं तभी इस लण्ड का पूरा मजा ले पायेंगी। वैसे एक बात कहूं ‘आपकी चूत आपकी बेटी की चूत से बहुत मस्त है.’ मैंने उन्हें मस्का लगाते हुए कहा।

वो मेरे लण्ड को हाथ में लेते हुये बोली- ना रे मेरे राजा, इस लण्ड के लिए तो मैं कुछ भी कर सकती हूं. आज से मैं तुम्हें खुलकर मजा दूंगी। लेकिन मेरी बेटी के चक्कर में मेरी चूत को न भूल जाना।
“आंटी आप चिन्ता ना करो. एक दिन आपको और आपकी बेटी को इसी बिस्तर में एक साथ चोदूंगा।”
“अरे ऐसा सोचना भी मत! मेरी चुदाई की बात मेरी बेटी को कभी पता नहीं चलनी चाहिये वरना वो मुझे रण्डी समझेगी और मेरी बेटी की भी जिंदगी बर्बाद मत कर देना उससे बाद में शादी कर लेना. शादी के बाद भी मुझे ये सुख देते रहना।”
“ठीक है आंटी, जैसा आप ठीक समझें।”

आधे घंटे के बाद मेरे लंड में फिर से जोश आने लगा। मैंने आंटी को उल्टी लिटा दिया और पीछे से उसकी चूत को चोदने लगा। पीछे से चोदने में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी कुंवारी लड़की की चुदाई कर रहा हूं। उसकी गोल-गोल गांड मेरे लंड के दोनों तरफ़ इस तरह से फ़िट हो रही थी मानो मेरे लिये ही वो गांड बनी हो।

मैं फ़ुल स्पीड में उसकी चुदाई करने लगा और इस बार भी लंड ने सब गर्मी बाहर निकाली तो उसकी चूत मेरे वीर्य से भर गयी। अब उनकी चूत की खुजली कुछ हद तक तो मिट ही चुकी थी।

उस रात मैंने आंटी को दो बार और चोदा. रात के 3 बजे मैं अपने रूम में वापस आकर सो गया।

अब तो 15 दिन मेरा यही काम था. रात में जाकर मैं आंटी चूत और गांड की ठुकाई करके आता। दिन में मैं उनके घर के आस-पास भी नहीं फटकता था ताकि हमारे बीच में पक रही खिचड़ी का किसी को पता न चले।

अब तो हम दोनों ने भी दिल भर के चुदाई कर डाली थी. मैंने उनके सभी छेदों को अपने पानी से भर दिया था। कोई दिक्कत तो थी नहीं. उनका पहले ही ऑपरेशन हो रखा था।

बस बेटी को चोदते वक्त ही ध्यान देना था कि कहीं वो प्रेंग्नेंट न हो जाये। इस तरह मैंने 2 साल तक दोनों मां-बेटी की अलग-अलग खूब चुदाई की। फिर मैं जॉब के लिए दिल्ली आ गया और कुछ सालों बाद ही लड़की की कहीं और शादी हो गयी और मां को तो कभी गांव जाने पर मौका लगते ही चोद ही लेता हूँ।

तो दोस्तो, कैसी लगी देसी मां बेटी की चुदाई की कहानी। आप मुझे कमेंट पर जवाब दे सकते हैं। आपके जवाब और अमूल्य सुझाव के इंतजार में आपका अपना- राज शर्मा।

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